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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ a++29++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++S++ ++600++KA ___'जिन्होंने वाराणसी ( बनारस ) के राजाके सामने विद्वेषियों* को-अनेकान्तात्मक-जैनशासनसे द्वेष रखनेवाले सर्वथा एकान्त2 वादियोंको-पराजित कर दिया था, वे समन्तभद्र मुनीश्वर किन
के स्तुतिपात्र नहीं हैं ?--समीके द्वारा भले प्रकार स्तुति किये जानेके योग्य हैं। ३ समन्तभद्र-अभिनन्दन
येनाशेष-कुनीति-वृत्ति-सरितः प्रेक्षावतां शोषिताः । यद्वाचोऽप्यकलंकनीति-रुचिरास्तत्त्वार्थ -सार्थद्युतः। स श्रीस्वामिसमन्तभद्र-यतिभृद्भूयाद्विभुर्भानुमान् विद्याऽऽनन्द-धनप्रदोऽनघधियां स्याद्वादमार्गाग्रणीः ॥
-अष्टसहस्रयां, श्रीविद्यानन्दः . 'जिन्होंने परीक्षावानोंके लिये सम्पूर्ण कुनीति और कुवृत्तिरूप-नदियोंको सुखा दिया है, जिनके वचन निर्दोषनीति--स्या
द्वादन्यायको लिये हुए होने के कारण मनोहर हैं तथा तत्त्वार्थ+ समूहके द्योतक हैं वे योगियोंके नायक, स्यद्वादमार्गके नेता, विभु
सामर्थ्यवान् और भानुमान-सूर्यके समान देदीप्यमान अथवा तेजस्वी--श्रीसमन्तभद्रस्वामी कलुषित-आशय-रहित प्राणियोंको-सज्जनों अथवा सुधीजनोंको-विद्या और आनन्द-घनके प्रदान करनेवाले होवें--उनके प्रसादसे (प्रसन्नतापूर्वक उन्हें चित्तमें धारण करनेसे) सबोंके हृदयमें शुद्धज्ञान और आनन्दकी वर्षा होवे।'
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