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सत्साधु- स्मरण - मंगलपाठ ++QC++?.
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कवियोंके - नूतन संदर्भ रचनेवालोंके - तीर्थंकर हैं - काव्यतीर्थके विधाता हैं। उनके विषयमें और अधिक क्या कहा जाय ?' अचिन्त्य -महिमा देवः सोऽभिवन्द्यो हितैषिणा ।
शब्दाच येन सिद्धयन्ति साधुत्वं प्रतिलम्भिताः || —पार्श्वनाथचरिते, श्रीवादिराजसूरिः
'जिनके द्वारा - जिनके व्याकरणशास्त्रको लेकर — शब्द भले प्रकार सिद्ध होते हैं, वे देवनन्दी अचिन्त्य - महिमा -युक्त देव हैं और अपना हित चाहनेवालोंके द्वारा सदा बन्दना किये जानेके
योग्य हैं ।'
पूज्यपादः सदा पूज्यपादः पूज्यैः पुनातु माम् । व्याकरणार्णवो येन तीर्णो विस्तीर्ण सद्गुणः ।।
—पाण्डवपुराणे, श्रीशुभचन्द्रसूरिः
'जो पूज्योंके द्वारा भी सदा पूज्यपाद हैं, व्याकरण - समुद्रको तिर गये हैं और विस्तृत सद्गुणोंके धारक हैं, वे श्रीपूज्यपाद आचार्य मुझे सदा पवित्र करें - नित्य ही हृदयमें स्थित होकर पापोंसे मेरी रक्षा करें ।'
५५.
अपाकुर्वन्ति यद्वाचः काय - वाक्-चित्तसंभवम् । कलङ्कमङ्गिनां सोऽयं देवनन्दी नमस्यते ॥
— ज्ञानार्णवे, श्रीशुभचन्द्रसूरिः
'जिनके वचन प्राणियोंके काय, वाक्य और मनःसम्बन्धी दोषों को दूर कर देते हैं - जिनके वैद्यक शास्त्रसे ( उसके सम्यक् प्रयोगसे ) शरीरके, व्याकरणशास्त्रसे वचनके और समाधिशास्त्र
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