________________
अगससानाला ..... -
प्रकीर्णक-पुस्तकमाला S++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++S++++30++ ++S
इति समय-गुरूणामेकतः संगतानाम् प्रतिनिधिरिव देवो राजते वादिराजः॥
-नगर-ताल्लुक शिलालेख नं० ३६ ____ 'जो सभामें अकलंक थे-विद्वानों तथा राजाओंकी परिषदों. में उपस्थित होकर अपना प्रभाव व्यक्त करने में अकलङ्कदेवके डू समान कुशल थे-, कीर्तन करने में प्रतिपादन करनेके ढगमेंधर्मकीर्ति (बौद्धाचार्य)के सदृश दक्ष थे। बोलने में वृहस्पतिके तुल्य चतुर थे, और न्यायवादमें न्यायपदार्थोंका विश्लेषण करने में(न्यायदर्शनके प्रवर्तक) अक्षपाद (गौतम ) के समान निपुण थे। * वे श्रीवादिराजदेव इन विभिन्न धर्मगुरुओंके एकीभूत प्रतिनिधि
रूपसे शोभायमान हुए हैं।
DO++
++
++
++
++
++S
++S++
++00++
++