Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 89
________________ +++&C++++7++++60++++++++@C++5 सत्साधु- स्मरण - मंगलपाठ O++++++964 २७ श्रीवादिराज - स्मरण +++*08++ श्रारुद्धाम्बरमिन्दुबिम्ब-रचितौत्सुक्य' सदा यद्यश श्छत्रं वाक् चमरीज-राजि - रुचयोऽभ्यर्णं च यत्कर्णयोः । सेव्यः सिंहसमर्च्य - पीठ-विभवः सर्व प्रवादि- प्रजादत्तोच्चैर्जयकार - सार-महिमा श्रीवादिराजो विदाम् ॥ - मल्लिषेण प्रशस्ति ( श्र० शि० ५४ ) " 'जिनका यशरूपी छत्र आकाशको सदैव घेरे हुए था और उसने चन्द्रबिम्बके लिये उत्सुकता उत्पन्न कर दी थी - चन्द्रमा भी जिनके यश के विस्तार और उसकी उज्ज्वलता तथा स्थिरताको देखकर अपने को हीन अनुभव करता हुआ तद्रूप होनेके लिये उत्सुक बना हुआ था -, (प्रशंसा ) वाक्यरूपी चमर-समूहकी किरणें निरन्तर ही जिनके कानोंके समीप पड़ती थीं- जिन्हें अपना यशोगान स्पष्ट सुनाई पड़ता था, जिनका आसनविभव ( माहात्म्य) सदा ही सिंह- समर्च्य था- जयसिंह नरेशके द्वारा पूजित था— और सम्पूर्ण प्रवादीजन उच्च स्वरस जिनकी महिमा - का जयजयकार किया करते थे, वे श्रीवादिराजसूरि विद्वानोंके द्वारा सेवनीय हैं। सदसि यदकङ्कः कीर्तने धर्मकीर्ति - ६चसि सुरपुरोधा न्यायवादेऽक्षपादः । ७३ X++++++++++++++++++20

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