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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++ ++20++ ++ ++ ++ ++S++ ++30++S++8++m ___सिद्धान्तागमोंके उपनिबन्धों-धवलादिग्रन्थों के विधाता श्रीवीरसेनगुरुके कोमल चरण-कमल मेरे हृदय-सरोवर में चिरकाल तक स्थिर रहें।'
'श्रीवीरसेनकी धवला भारती-धवला-टीकांकित सरस्वती अथवा विशुद्ध वाणी और चन्द्रमाके समान निर्मल कीर्तिकी, जिसने अपने धवल प्रकाशसे इस सारे संसारको धवलित (उज्ज्वल) कर दिया है, मैं वन्दना करता हूँ।'
तत्र वित्रासिताशेष-प्रवादि-मद-वारणः । वीर-सेनाग्रणीवीरसेनभट्टारको वभौ ॥
. --उत्तरपुराणे, श्रीगुणभद्रसूरिः ___'मूलसंघान्तर्गत से नान्वयमें वीरकी सेनाके अग्रणी (नेता) वीरसेन भट्टारक हुए हैं, जिन्होंने सम्पूर्ण प्रवादिरूपी मस्त हाथियोंको परास्त किया था।'
तदन्ववाये विदुषां वरिष्ठः स्याद्वादनिष्ठः सकलागमज्ञः। श्रीवीरसेनोऽजनि तार्किकत्रीःप्रध्वस्तरागादिसमस्तदोषः॥ यस्य वाचां प्रसादेन ह्यमेयं भुवनत्रयम् । आसीदष्टांगनैमित्तज्ञानरूपं विदां वरम् ॥
-विक्रान्तकौरवे, श्रीहस्तिमल्लः ____ 'उन (स्वामी समन्तभद्र)के वंशमें श्रीवीरसेनाचार्य हुए हैं, जो कि विद्वानों में श्रेष्ठ थे स्याद्वादपर अपना दृढ निश्चय एवं आधार रखनेवाले थे, तार्किकोंकी शोभा थे और रागादि सम्पूर्ण-दोषोंका विध्वंस करनेवाले थे। साथ ही, जिनके वचनोंके प्रसादसे यह अज्ञेय भुवनत्रय विद्वानोंके लिये अष्टाङ्ग-निमित्तज्ञानका अच्छा विषय बन गया था।' -- ++S++ ++de+rek+ ++S++ ++ ++ ++ ++ ++
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