Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 86
________________ C++ ++2 ++ ++ ++ ++OC++ ++ ++ ++ ++ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला a++29++20++20++ ++S++C++ ++28+ +oney++S++ ++2 प्रसिद्ध-सिद्धान्त-गभस्तिमाली समस्तवैय्याकरणाधिराजः।। गुणाकरस्तार्किक-चक्रवर्ती प्रवादिसिंहो वरवीरसेनः॥ -धवला, प्रशस्ति ___'श्रीवीरसेनाचार्य प्रसिद्ध सिद्धान्तों-षड्ग्वण्डागमादिकोंको प्रकाशित करनेवाले सूर्य थे,, समस्त वैय्याकरणोंके अधिपति । थे, गुणोंकी खानि थे, तार्किकचक्रवर्ती थे और प्रवादिरूपी गजोंके लिये सिंह-समान थे।' श्रीवीरसेन इत्यात्त-भट्टारकपृथुप्रथः । स नः पुनातु पूतात्मा वादिवृन्दारको मुनिः ॥ लोकवित्वं कवित्वं च स्थितं भट्टारके द्वयं । वाग्मिता वाग्मिनो यस्य वाचा वाचस्पतेरपि । सिद्धान्तोपनिवन्धानां विधातुर्मद्गुरोश्चिरम् । मन्मनःसरसि स्थेयान्मृदुपादकुशेशयम् ॥ धवला भारतीं तस्य कीर्तिं च शुचि-निर्मलाम् । धवलीकृतनिःशेषभुवनां तां नमाम्यहम् ॥ _ --श्रादिपुराणे, श्रीजिनसेनाचार्यः ___'जो भट्टारककी बहुत बड़ी ख्यातिको प्राप्त थे वे वादिशिरोमणि और पवित्रात्मा श्रीवीरसेन मुनि हमें पवित्र करें हमारे हृदयमें निवास कर पापोंसे हमारी रक्षा करें। _ 'जिनकी वाणीसे वाग्मी वृहस्पतिकी वाणीभी पराजित होती + थी उन भट्टारक वीरसेनमें लौकिक विज्ञता और कविता दोनों , गुण थे।' ++ ++ ++ ++ ++ ++++20++8+20++30++ ++ ++ee++26++ce++26++ ++ ++26++ ++26++ C++OC++CE++ ++ ++ C++OC++Se++OC++8 S++ ++o

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