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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला a++ ++200++26++20++call++2++de++-28++2++ ++do++se
चन्द्रांशुशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकविं स्तुवे । कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाह्लादितं जगत् ॥
श्रादिपुराणे, श्रीजिनसेनाचार्यः 'जिन्होंने चन्द्रमाका उदय करके-'न्यायकुमुदचन्द्र' ग्रन्थकी रचना करके-अथवा 'चन्द्रोदय' नामक ग्रन्थको रचकर जगतको सदाके लिये आनन्दित किया है उन चन्द्र-किरण-समान उज्ज्वल यशके धारक, कवि प्रभाचन्द्र की मैं स्तुति करता हूँ।' माणिक्यनन्दी जिनराजवाणी-प्राणाधिनाथः परवादि-मर्दी । चित्रं प्रभाचन्द्र इह मायां मार्चण्ड-वृद्धौ नितरां व्यदीपीत् ॥
सुखिने न्यायकुमुदचन्द्रोदयकृते नमः। शाकटायनकृत्सूत्रन्यासकटे व्रती(प्रभे)न्दवे ॥
-शिमोगा-नगरताल्लुक-शिलालेख नं० ४६ ___'जो श्रीमाणिक्य (आचार्य) को आनन्दित करनेवाले उनके 'परीक्षामुग्व' ग्रन्थपर 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' नामका भाष्य लिखकर उनकी परोक्ष प्रसन्नता सम्पादन करनेवाले हैं तथा जिनराजकी वाणीके प्राणाधार हैं--जिन्हें पाकर जिनवाणीके उत्कर्षमें वृद्धि हुई है। अथवा जो माणिक्यनन्दी-यतिराजकी वाणी (परीक्षामुखसूत्र ) के प्राणाधिपति हैं-प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक भाष्यके द्वारा उसके प्राणों (तत्त्वों) के पूर्णतः संरक्षक हैं। और जिन्होंने परिवादियोंका मर्दन किया है उनके मिथ्याभिमानका खण्डन किया है वे प्रभाचन्द्र इस पृथ्वीपर निरन्तर ही मार्तण्डकी वृद्धि
में प्रदीप्त रहे हैं यह एक आश्चर्यकी बात है अर्थात् प्रभापूर्ण - चन्द्रमा यद्यपि मार्तण्ड (सूर्य) की तेजोवृद्धि में कोई सहायक नहीं। ++ ++ ++ + ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
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