Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 83
________________ C++ C++ S++ E++ मत्साधु-स्मरण-मगलपाठ 'tta++ ++2&++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ ___जिनकी वचनामृत-वृष्टियोंसे जगत्को खा जाने-भस्मसात् * कर देनेवाली शून्यवादरूप अग्नि शान्त होगई उन श्रीअनन्तवीर्याचार्यरूप मेधको मैं नमस्कार करता हूँ।' गूढमर्थमकलङ्कवाङ्मयागाधभूमिनिहितं तदर्थिनाम् । व्यञ्जयत्यमलमनन्तवीर्यवाक् दीपवर्तिरनिशं पदे पदे ॥ न्यायविनिश्चय-विवरणे, श्रीवादिराजसूरिः । ___'श्रीअनन्तवीर्यकी निर्मलवाणी-निर्दोषटीका-अकलङ्क वाङ्मयकी-अकलंकदेवके सिद्धिविनश्चयादिशास्त्रोंकी-अगाध भूमिमें संनिहित-गहराई में स्थित-गूढअर्थको पद पदपर व्यक्त करनेवाली समर्थ दीपशिखा है-टौर्चके समान है।' S++ ++CO++20++C++ ++ ++ २४ श्रीप्रभाचन्द्र-स्मरण ++EC++S++S++CE++EC++Se++S++ +++26++2C++ C++OC++00++ ++ अभिभूय निजविपक्षं निखिलमतोद्योतनो गुणाम्भोधिः। सविता जयतु जिनेन्द्रः शुभप्रबन्धः प्रभाचन्द्रः॥ -न्यायकुमुदचन्द्र-प्रशस्तिः ___ 'अपने विपक्ष-समूहको पराजित करके जो समस्तमतोंके यथार्थ स्वरूपको प्रकाशित करनेवाले हैं वे गुण-समुद्र, जितेन्द्रि योंमें अग्रगण्य और शुभप्रबन्ध-न्यायकुमुदचन्द्र जैसे पुण्य2 प्रबन्धोंके विधाता-प्रभाचन्द्राचार्य नामके सूर्य जयवन्त हों अपने वचन-तेजसे लौकिकजनोंके हृदयान्धकारको दूर करने में - समर्थ होवें।' C++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++818++8++ ++ ++ ++ ++0 ++

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