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सत्साधु-स्मरण- मंगलपाठ
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प्रधान तथा निर्मल गुणों के आश्रयस्थान श्रीविद्यानन्दस्वामी जयवन्त हैं -- सदा ही अपने पाठकों विद्वज्जनोंके हृदय में अपने अगाध पाण्डित्यकी छाप जमानेवाले हैं।'
ऋजुसूत्रं स्फुरद्रत्नं विद्यानन्दस्य विस्मयः । शृण्वतामप्यलङ्कारं दीप्तिरं गेषु रङ्गति ॥
- पार्श्वनाथचरिते, श्रीवादिराजसूरिः 'श्रीविद्यानन्दाचार्य ऋजुसूत्ररूप तथा देदीप्यमान रत्नरूप अलंकारको जो सुनते भी हैं उनके भी अंगोंमें दीप्ति दौड़ जाती है. यह आश्चर्य की बात है ! अर्थात् अलंकारों- आभूषणों को जो मनुष्य धारण करता है उसीके अंगों में दीप्ति दौड़ा करती है-सुननेवालोंके अंगोंमें नहीं; परन्तु श्रीविद्यानन्दस्वामीके सत्यसूत्रमय और स्फुरद्रत्नरूप प्राप्तमीमांसाऽलंकार ( ही ) और श्लोकवार्तिकालंकार (तत्रार्थटीका ) ऐसे अद्भुत अलंकार हैं कि उनके सुनने से भी अंगों में दीप्ति दौड़ जाती है--सुननेवालोंके अंगों में विद्युत्का सा कुछ ऐसा संचार होने लगता है कि एकदम प्रसन्नता जाग उठती है ।'
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श्रीमाणिक्यनन्दि-स्मरण
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साभासं गदितं प्रमाणमखिलं संख्या - फल - स्वार्थतः सुव्यक्तैः सकलार्थसार्थविषयैः स्वल्पैः प्रसन्नैः पदैः ।
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