Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 79
________________ 2++26. सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++QC++ स्याद्वादाऽप्रतिमप्रभूतकिरणैः व्याप्तं जगत् सर्वतः स श्रीमान् कलङ्कभानुरसमो जीयात् जिनेन्द्रः प्रभुः ॥ — न्यायकुमुदचन्द्रे, श्रीप्रभाचन्द्राचार्यः 'जिन्होंने स्याद्वादरूप - अनुपम - समर्थ किरणोंसे कुतर्कोत्पन्न सम्पूर्ण विभ्रमान्धकारको मूलसे उन्मूलित किया है-उसका पूर्णतः विनाश किया है, कुनयरूप विस्तृत तथा अगाध नदियोंके समूहको पूरी तौर से सुखा दिया है और अपनी उन किरणोंसे जगतको सर्वत्र व्याप्त किया है वे अद्वितीय सूर्य श्री कलङ्कप्रभु जयवन्त हों, जो विजेताओं में प्रधान थे ।' मिथ्यायुक्ति पलालकूटनिचयं प्रज्वाल्य निःशेषतः सम्यग्युक्तिमहांशुभिः पुनरियं व्याख्या परोक्षे कृता । येनासौ निखिल - प्रमाण-कमल-प्राज्य-प्रबोधप्रदः भास्वानेष जयत्यचिन्त्य-महिमा शास्ताऽकलङ्को जिनः ॥३॥ - न्याय कुमुदचन्द्रे, श्रीप्रभाचन्द्राचार्यः 'जिन्होंने समीचीन - युक्तियोंरूप महती किरणों से मिथ्या-युक्तियोंरूप पुरालके - पूलों के समूहको पूर्णतः जलाकर परोक्ष-प्रमाणकी व्याख्या की है - उसे भले प्रकार स्पष्ट तथा व्यक्त किया है-वे सम्पूर्ण प्रमाण-कमलोंके उत्कट उद्बोधक - उन्हें पूर्णतः विक सित करनेवाले - अचिन्त्य - महिमाके धारक, विजयी और शास्ता कलंकदेव जयवन्त हैं—लोक- हृदयों में अपना प्रभाव अंकित किये हुए हैं ।' 96++20++9C++96++96++++++20++++++ +2C++6++96++++

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