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सत्साधु-स्मरण-मंगलपा Ep++C++ ++S++ ++ ++S++S+++++0+- ++S++ है तौरसे सार्थक करनेके लिये ही, अकलंक बना डाला है-जगत+ के जीवोंकी बुद्धि में प्रविष्ट हुए एकान्त-मलको अपने अनेकान्त& मय-वचनप्रभावसे धो डाला है।'
इत्थं समस्तमतवादि-करीन्द्रदर्पमुन्मूलयन्नमलमानदृढप्रहारैः। स्याद्वाद-केसरसटाशततीव्रमूर्तिः पश्चाननो भुवि जयत्यकलङ्कदेवः ॥
--न्यायकुमुदचन्द्रे, श्रीप्रभाचन्द्राचार्यः 'इस प्रकार जिन्होंने निर्दोष प्रमाणके दृढ प्रहारोंसे समस्त अन्यमतवादिरूप-गजेन्द्रोंके गर्वको निर्मूल कर दिया है वे स्या
द्वादमय सैंकड़ों केसरिक जटाओंसे प्रचण्ड एवं प्रभावशालिनी * मूर्तिके धारक श्रीअकलंकदेव भूमण्डलपर केहरि-सिंहके समान * जयशील हैं--अपनी प्रवचन-गर्जनासे सदा ही लोक-हृदयोंको * विजित करनेवाले हैं।'
जीयाचिरमकलङ्कब्रह्मा लघुहव्वनृपति-वरतनयः। अनवरत-निखिलजन-नुतविद्यः प्रशस्तजन-हृद्यः॥
-तत्त्वार्थवार्तिक-प्रथमाध्याय-प्रशस्तिः 'जिनकी विद्या-ज्ञानमाहात्म्य के सामने सदा सब जन नतमस्तक रहते थे और जो सज्जनोंके हृदयों को हरनेवाले थे-- उनके प्रेमपात्र एवं आराध्य बने हुए थे–वे लघुहव्वराजाके श्रेष्ठपुत्र श्रीअकलंकब्रह्मा-अकलंक नामके उच्चात्मा महर्षि--चिरकाल
तक जयवन्त हों--अपने प्रवचनतीर्थ-द्वारा लोकहृदयों में सदा । - सादर विराजमान रहें।' . C++ ++ ++ ++ ++ ++S++ ++ ++S++ ++ ++
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