Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 76
________________ ६० ++ ++ ++OO++26++20++20++ ++ ++ ++ ++29++ ++ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला Ca++se++S++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++30++m अकलङ्कगुरु यादकलङ्कपदेश्वरः । बौद्धानां बुद्धि-वैधव्य-दीक्षागुरुरुदाहृतः॥ _ --हनुमच्चरिते, श्रीब्रह्मअजितः ___'जो बौद्धोंकी बुद्धिको वैधव्य-दीक्षा देनेवाले गुरु कहे जाते हैं-जिनके सामने बौद्ध विद्वानोंकी बुद्धि विधवा जैसी दशाको प्राप्त होगई थी. उसका ऐसा कोई स्वामी नहीं रहा था जो बौद्धसिद्धान्तोंकी प्रतिष्ठाको कायम रख सके-वे अकलंकपदके अधिपति श्रीअकलंकगुरु जयवन्त हों-चिरकालतक हमारे हृदयमन्दिर में विराजमान रहें।' तकभूवल्लभो देवः स जयत्यकलङ्कधीः । जगद्रव्यमुषो येन दण्डिताः शाक्यदस्यवः ॥ –पार्श्वनाथचरिते, श्रीवादिराजसूरिः 'जिन्होंने जगत्के द्रव्योंको चुरानेवाले-शून्यवाद-नैरात्म्यवादादि सिद्धान्तोंके द्वारा जगत्के द्रव्योंका अपहरण करनेवालेउनका अभाव प्रतिपादन करनेवाले-बौद्ध दस्युओंको दण्डित , किया, वे अकलंकबुद्धिके धारक तर्काधिराज श्रीअकलंकदेव जयवन्त हैं-सदा ही अपनी कृतियोंसे पाठकोंके हृदयोंपर अपना सिक्का जमानेवाले हैं।' भट्टाकलङ्कोऽकृत सौगतादि-दुर्वाक्यपंकैस्सकलङ्कभूतम् । जगत्स्वनामेव विधातुमुच्चैः साथ समन्तादकलङ्कमेव ॥ _ --श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० १०५ 'बौद्धादि-दार्शनिकोंके मिथ्यैकान्तवादरूप दुर्वचन-पङ्कसे सकलंक हुए जगत्को भट्टाकलंकदेवने, अपने नामको मानों पूरी, ++ ++00++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++6 ++ ++GE++26++S++Ho++20++OO++OO++00++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ C++OC++6

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