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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला a++20++20++o++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ के विस्तारके साथ खण्डन करने के लिये 'विलक्षणकदर्थन' नामक * ग्रंथके निर्माण करने में जिनकी सहायक हुई है, उन श्रीपात्र2 केसरी गुरुकी महिमा महान् है-असाधारण है।'
भट्टाकलङ्क-श्रीपाल-पात्रकेसरिणां गुणाः। विदुषां हृदयारूढा हारायन्तेऽतिनिर्मलाः ॥
-श्रादिपुराणे, श्रीजिनसेनाचार्यः । 'भट्टाकलङ्क और श्रीपाल-जैसे आचार्योंके अतिनिर्मल गुणोंके साथ पात्रकेसरी आचार्यके अतिनिर्मल गुण भी विद्वानोंके हृदयोंपर हारकी तरहसे आरूढ हैं-विद्वजन उन्हें हृदयमें धारणकर अतिप्रसन्न होते तथा शोभाको पाते हैं।'
. विप्रवंशाग्रणीः सूरिः पवित्रः पात्रकेसरी। स जीयाजिन-पादाब्ज-सेवनैक-मधुव्रतः॥
- --सुदर्शनचरित्रे, श्रीविद्यानन्दी । ___'वे पवित्रात्मा श्रीपात्रकेसरी सूरि जयवन्त हों-लोकहृदयों, पर सदा अपने गुणोंका सिक्का जमानेमें समर्थ हो-जो ब्राह्मण- कुलमें उत्पन्न होकर उसके अपनेता थे और (बादको) जिनेन्द्रदेव• के पद-कमलोंका सेवन करनेवाले असाधारण मधुकर (भ्रमर) हूँ + बने थे-जिन धर्म में दीक्षित होकर जिनदेवकी उपासना-आरा
धनाका ही जिनके एक मात्र व्रत था।'
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