Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ a++PR++28++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++20+ + है को, 'जैनाभिषेक' ऊँचे दर्जेकी कविताको, 'छन्दशास्त्र' बुद्धिकी * सूक्ष्मता (रचनाचातुर्य) को और समाधिशतक' जिनकी स्वात्म स्थिति ( स्थितिप्रज्ञता ) को संसार में विद्वानोंपर प्रकट करता है वे श्रीपूज्यपाद मुनीन्द्र मुनियोंके गणोंसे पूजनीय हैं।' Pl++26++CO++ P++26++OC++OC++ श्रीपात्रकेसरि-स्मरण ++k++ee++ ++CE++26++ ++ ++OO++ ++OC++26++GO++ भूभृत्पादानुवर्ती सन् राजसेवापराङ्मुखः। संयतोऽपि च मोक्षार्थी भात्यसौ पात्रकेसरी ॥ --नगरताल्लुक शिलालेख नं० ४६ ___ 'जो राजपदसेवी राजसेवासे पराङ मुख होकर-उसे छोड़कर-मोक्षके अर्थी संयमी मुनि बने हैं, वे पात्रकेसरी (स्वामी ) भूभृत्पादानुवर्ती हुए-तपस्याके लिये गिरचरणकी शरणमें रहते । हुए-खूब ही शोभाको प्राप्त हुए हैं।' महिमा स पात्रकेसरिगुरोः परं भवति यस्य भक्त्यासीत् । डू पद्मावती सहाया त्रिलक्षणकदर्थनं कर्तुम् ॥ -श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० ५४ ॥ ___'जिनकी भक्तिसे पद्मावती (देवी) 'त्रिलक्षणकदर्थन' करने में बौद्धों द्वारा प्रतिपादित अनुमान-विषयक हेतुके त्रिरूपात्मक 4 (पक्ष-धर्मत्व, सपक्ष-सत्व और विपक्ष-व्यावृत्तिरूप) लक्षणका &++ ++30++S++ ++GO++++ ++ ++ ++ ++ ++3 C++OC++ C++ C++S ++OO++GC++ ++ ++

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94