Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 72
________________ ++2 C++ ++ ++OE++ ++ ++ ++ ++ ++ ++OE++OC++ ++ ++ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला 9++20++ ++ ++ ++ ++++ ++26++ik++ ++ ++? मनके विकार दूर हो जाते हैं-उन श्रीदेवनन्दी आचार्यको है नमस्कार है।' न्यासं जेनेन्द्रसंज्ञं सकलबुधनुतं पाणिनीयस्य भूयोन्यासं शब्दावतारं मनुजततिहितं वैद्यशास्त्रं च कृत्वा। ई यस्तत्वार्थस्य टीका व्यरचयदिह भात्यसौ पूज्यपादस्वामी भूपालक्न्यः स्वपरहितवचः पूर्णदृग्बोधवृत्तः॥ --नगरताल्लुक-शिलालेख नं० ४६ । 'जिन्होंने सकल बुधजनोंसे स्तुत 'जैनेन्द्र' नामका न्यास (व्याकरण ) बनाया, पुनः पाणिनीय व्याकरणपर 'शब्दावतार' नामका न्यास लिखा तथा मनुज-समाजके लिये हितरूप वैद्यक शास्त्रकी रचना की और इन सबके बाद तत्त्वार्थसूत्रकी टीका + (सर्वार्थसिद्धि ) का निर्माण किया, वे राजाओंसे वन्दनीयहूँ अथवा दुर्विनीत राजासे पूजित-स्वपर-हितकारी वचनों (ग्रंथों) * के प्रणेता और दर्शन-ज्ञान-चरित्रसे परिपूर्ण श्रीपूज्यपाद स्वामी (अपने गुणोंसे ) खूब ही प्रकाशमान हैं।' जैनेन्द्रं निजशब्दभागमतुलं सर्वार्थसिद्धिः परा सिद्धान्ते निपुणत्वमुद्धकविता जैनाभिषेकः स्वकः । छन्दः सूक्ष्मक्ष्यिं समाधिशतकं स्वास्थ्यं यदीयं विदामाख्यातीह स पूज्यपादमुनिपः पूज्यो मुनीनां गणैः ॥ -श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० ४० _ 'जिनका 'जैनेन्द्र' (व्याकरण) शब्दशास्त्रों में अपने अतुलित है मागको, 'सर्वार्थसिद्धि' (तत्त्वार्थटीका) सिद्धान्तमें बड़ी निपुणता6++ ++ ++ ++ ++ ++T+S++S++S++ ++ ++ 8++ce++de+ + ++ ++ ++ ++OC++ ++ ++ ++ + P++OO+++

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