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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला A++000++20++a@++ ++ ++++ ++28++S++a++8++2
'श्रीपूज्यपादने धर्मराज्यका उद्धार किया था-लोकमें धर्मकी पुनः प्रतिष्ठा की थी-इसीसे आप देवताओंके अधिपति-द्वारा है पूजे गये और 'पूज्यपाद' कहलाये। आपके पाण्डित्य (विद्वत्ता) पूर्ण
गुणोंको आज भी आपके द्वारा उद्धार पाये हुए-रचे हुए-शास्त्र बतला रहे हैं उनका खुला गान कर रहे हैं । आप जिनेन्द्रकी तरह विश्वबुद्धिके धारक-समस्त शास्त्रविषयोंके पारंगत-थे, कामदेवको जीतनेवाले थे और ऊँचे दर्जेके कृतकृत्यभावको धारण किये हुए थे, इसीसे योगियोंने आपको ठीक ही 'जिनेन्द्रबुद्धि' कहा है।'
श्रीपूज्यपादमुनिरप्रतिमौषधर्द्धिजर्जीयाद्विदेहजिनदर्शनपूतगात्रः। यत्पादधौतजल-संस्पर्शप्रभावात् कालायसं किल तदा कनकीचकार ।
--श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० १०८ ____ 'जो अद्वितीय औषध-ऋद्धिके धारक थे, विदेह-स्थित जिनेन्द्र भगवानके दर्शनसे जिनका गात्र (शरीर) पवित्र होगया था और जिनके चरण-धोए जलके स्पर्शसे एक समय लोहा भी सोना बन . गया था, वे श्रीपूज्यपाद मुनि जयवन्त हों-अपने गुणोंसे लोकहृदयोंको वशीभूत करें।'
कवीनां तीर्थकद्देवः किंतरां तत्र वर्ण्यते । विदुषां वाङ्मलध्वंसि तीर्थ यस्य वचोमयम् ॥
_ --श्रादिपुराणे, श्रीजिनसेनाचार्यः 'जिनका वाङ्मय-शब्दशास्त्ररूप-व्याकरण-तीर्थ विद्वज्जनोंके वचनमलको नष्ट करनेवाला है, वे आचार्य श्रीदेवनन्दी ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
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