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++ॐ
सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++ S++20++20++ ++ ++ ++++ ++22++28+ +8++8 ___'हृदयमें स्थित हुए श्रीसिद्धसेन-जैसे कवि मेरी उक्तिरूपी : छोटीसी कल्पलताको करुणाऽमृतसे सींचते हुए उसे वृद्धिंगत । ॐ करें-मैं सिद्धसेन-जैसे महाप्रभावशाली कवियोंको अधिकाधिक-, * रूपसे हृदयमें धारण करके अपनी वाणीको उत्तरोत्तर पुष्ट और है - शक्ति-सम्पन्न बनाने में समर्थ होऊँ ।'
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श्रीदेवनन्दि-पूज्यपाद-स्मरण
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। यो देवनन्दि-प्रथमाभिधानो बुद्धया महत्या स जिनेन्द्रबुद्धिः।। 2 श्रीपूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजितं पादयुगं यदीयम् ॥
-श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० ४० । ___जिनका प्रथम नाम-गुरुद्वारा दिया हुआ दीक्षानाम
'देवनन्दी' था, जो बादको बुद्धिकी प्रकर्षताके कारण 'जिनेन्द्रहै बुद्धि' कहलाए, वे आचार्य 'पूज्यपाद' नामसे इसलिये प्रसिद्ध हुए * हैं कि उनके चरणोंकी देवताओंने आकर पूजा की थी।
श्रीपूज्यपादोद्धृतधर्मराज्यस्ततः सुराधीश्वरपूज्यपादः। यदीयवैदुष्यगुणानिदानीं वदन्ति शास्त्राणि तदुद्धृतानि ॥ धृतविश्वबुद्धिरयमत्र योगिभिः कृतकृत्यभावमविभ्रदुच्चकैः। जिनवद्वभूव यदनङ्गचापहृत् स जिनेन्द्रबुद्धिरिति साधु वर्णितः॥
___-श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० १०८ S++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++
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