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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++S++20++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ ___'जो काव्यों नूतन सन्दर्भो-रूप-माणिक्यों ( रत्नों ) की है
उत्पत्तिके स्थान हैं वे अति उत्कृष्ट श्रीसमन्तभद्रस्वामी हमें सूक्तिई रूपी रत्नसमूहोंको प्रदान करनेवाले होवें-अर्थात् स्वामी समन्त* भद्रके आराधन और उनकी भारतीके भले प्रकार अध्ययन और
मननके प्रसादसे हम अच्छी अच्छी सुन्दर ऊंची-तुली रचनाएँ । करने में समर्थ होवें।' १३ समन्तभद्र-हृदिस्थापन--
स्वामी समन्तभद्रो मेऽहर्निशं मानसेऽनघः । तिष्ठताज्जिनराजोद्यच्छासनाम्बुधिचन्द्रमाः ॥
--रत्नमालायां, श्रीशिवकोटिः 'वे निष्कलंक स्वामी समन्तभद्र मेरे हृदयमें दिन-रात स्थित रहें जो जिनराजके-भगवान महावीरके-ऊँचे उठते हुए शासनसमुद्रको बढ़ानेके लिये चन्द्रमा हैं अर्थात् जिनके उदयका निमित्त पाकर वीरभगवानका तीर्थ-समुद्र खूब वृद्धिको प्राप्त हुआ है और उसका प्रभाव सर्वत्र फैला है।'
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* बेलूर ताल्लुकेके शिलालेख नं० १७ (E. C.,V.) में भी, जो रामानुजाचार्य-मन्दिरके अहातेके अन्दर सौम्य-नायकी-मन्दिरकी छतके एक पत्थरपर उत्कीर्ण है और जिसमें उसके उत्कीर्ण होनेका समय शक सं० १०५६ दिया है, ऐसा उल्लेख पाया जाता है कि श्रुत
केवलियों तथा और भी कुछ प्राचार्योंके बाद समन्तभद्रस्वामी श्रीवर्ध* मान महावीरस्वामीके तीर्थकी--जैनमार्गकी-सहस्रगुणी वृद्धि करते। * हुए उदयको प्राप्त हुए हैं । ittee++BE+FOR++GE++E++++ ++ ++ ++ ++ ++
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