Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 65
________________ ४६ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++20+10++ सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ E++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++CPN++ ++A , प्रायो यस्योपदेशादविघटितनयान्मानमूलादलंध्यात् स्वामी जीयात्स शश्वत्प्रथिततरयतीशोऽकलकोरुकीर्तिः ॥ -अष्टसहस्रयां, श्रीविद्यानन्दाचार्यः ___'जिनके नय-प्रमाण-मूलक अलंध्य उपदेशसे-प्रवचनको सुनकर-महाउद्धतमति वे एकान्तवादी भी प्रायः शान्तताको प्राप्त हो जाते हैं जो कारणसे कार्यादिकका सर्वथा भेद ही नियत दू मानते हैं अथवा यह स्वीकार करते हैं कि कारण-कार्यादिक * सर्वथा अभिन्न ही हैं-एक ही हैं-वे निर्मल तथा विशाल कीर्तिसे युक्त अतिप्रसिद्ध मुनिराज स्वामी समन्तभद्र सदा जयवन्त रहें-अपने प्रवचन-प्रभावसे बराबर लोक-हृदयोंको है प्रभावित करते रहें। सरस्वती-स्वर-विहारभूमयः समन्तभद्रप्रमुखा मुनीश्वराः। जयन्ति वाग्वन-निपात-पाटित-प्रतीपराद्धान्त-महीध्रकोटयः॥ --गद्यचिन्तामणौ, श्रीवादीभसिंहाचार्यः 'वे मुनिराज स्वामी समन्तभद्र जयवन्त हैं-सदा ही जय, शील हैं, अपने पाठकों तथा अनुचिन्तकोंके अन्तःकरणपर * अपना सिक्का जमानेवाले हैं जो सरस्वतीकी स्वच्छंद विहार-भूमि थे-जिनके हृदय-मन्दिरमें सरस्वती-देवी बिना किसी रोक-टोकके है पूरी अज़ादीके साथ विचरती थी, और इसलिये जो असाधारण # विद्याके धनी थे और उनमें कवित्व-वाग्मित्वादि शक्तियाँ उच्चॐ कोटिके विकासको प्राप्त हुई थीं, और जिनके वचनरूपी वज्रके * निपातसे प्रतिपक्षी सिद्धान्तरूप-पर्वतोंकी चोटियाँ खण्ड खण्ड + हो गई थीं अर्थात् समन्तभद्रके आगे बड़े बड़े प्रतिपक्षी सिद्धाR++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++S++Se++ ++ ++S++e&++ C++ ++ ++S++ ++ ++ S++26++ ++00++ ++ S++ ++OO++30++2 &++

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