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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ @++20++30++20++30++8++++30++ ++ ++ ++ ++0
प्रभाव पड़ता था कि वे उन्हें देखते ही विषण्ण-वदन हो जाते में और किंकर्तव्यविमूढ बन जाते थे।
अवटुतटमटति झटिति स्फुट-पटु-वाचाट-धूर्जटेजिह्वा । वादिनि समन्तभद्रे स्थितवति का कथाऽन्येषाम् ॥ , .. -अलंकारचिन्तामणौ, विक्रान्तकौरवे च .
'वादी समन्तभद्रकी उपस्थितिमें, चतुराई के साथ स्पष्ट शीघ्र है और बहुत बोलनेवाले धूर्जटिकी-तन्नामक महाप्रतिवादी विद्वान्* की-जिह्वा ही जब शीघ्र अपने बिलमें घुस जाती है-उसे कुछ बोल नहीं पाता-तो फिर दूसरे विद्वानोंकी तो कथा ही क्या
है ? उनका अस्तित्व तो समन्तभद्र के सामने कुछ भी महत्व हूँ नहीं रखता।'
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* यह पद्य शकसम्वत् १०५० में उत्कीर्ण हुए श्रवणबेल्गोलके शिलालेख नं० ५४ (६७) में भी थोड़ेसे परिवर्तनके साथ पाया जाता + है। वहाँ 'धूर्जटेर्जिह्वा' के स्थानपर 'धूर्जटेरपि जिह्वा' और 'सति का *
कथाऽन्येषां' की जगह 'तव सदसि भूप कास्थाऽन्येषां' पाठ दिया है, है और इसे समन्तभद्रके वादारंभ-सभारंभ-समयकी उक्तियोंमें शामिल किया
है। पद्यके उस रूपमें धूर्जटिके निरुत्तर होनेपर अथवा धूर्जटिकी गुरुतर 2 पराजयका उल्लेख करके राजासे पूछा गया है कि 'धूर्जटि जैसे विद्वान्की । ऐसी हालत होनेपर अब आपकी सभाके दूसरे विद्वानोंकी क्या आस्था + है ? क्या उनमेंसे कोई वाद करनेकी हिम्मत रखता है.' ... . . ++ ++ ++ ++ ++ ++S++ ++ ++ ++20++ ++
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