________________
4E
T++
++
++
++
सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++ ++ ++ ++ &++8++28++
२०
++2
C++
++OC++
श्रीप्रकलङ्क-स्मरण
M++8++26++S++eo++
E++
C++20++OC++26++CC++
++SO++E++
C++
श्रीमद्भट्टाऽकलङ्कस्य पातु पुण्या सरस्वती । अनेकान्त-मरुन्मार्गे चन्द्रलेखायितं यया ॥
___-ज्ञानार्णवे, श्रीशुभचन्द्राचार्यः __'श्रीसम्पन्न भट्ट-अकलंकदेवकी वह पुण्या सरस्वती--पवित्र । भारती-हमारी रक्षा करो हमें मिथ्यात्वरूपी गर्त में पड़नेसे बचाओ-जो अनेकान्तरूपी आकाशमें चन्द्रमाके समान देदीप्यमान है-सर्वोत्कृष्टरूपसे वर्तमान है। भावार्थ-श्री अकलंकदेवकी मङ्गलमय-वचनश्री पद पदपर अनेकान्तरूपी सन्मार्गको व्यक्त करती है और इस तरह अपने उपासकों एवं शरणागतोंको मिथ्या-एकान्तरूप कुमार्गमें लगने नहीं देती। अतः हम उस अकलङ्क-सरस्वतीकी शरणमें प्राप्त होते हैं, वह अपने दिव्य-तेजद्वारा कुमार्गसे हमारी रक्षा करो।'
जीयात्समन्तभद्रस्य देवागमनसंज्ञिनः। स्तोत्रस्य भाष्यं कृतवानकलंको महर्द्धिकः ॥
नगर-ताल्लुक, शिमोगा-शिलालेख नं० ४६ । ___'जिन्होंने स्वामी समन्तभद्रके 'देवागम' नामक स्तोत्रका भाष्य 8 रचा है-उसपर 'अष्टशती' नामका विवरण लिखा है-चे * महाऋद्धिके धारक अकलंकदेव जयवन्त हों-अपने प्रभावसे * सदा लोक-हृदयों में व्याप्त रहें।' 5++ ++20++20++ ++80++++20++30++ ++89++ ++S
++26++20++C
++S++S++26++SC++Se++
++OO++
++
++