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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला T++ ++++ ++S++S++S++ ++ ++8++S++ ++ * न्तोंका प्रायः कुछ भी गौरव नहीं रहा था और न उनके प्रति- पादक प्रतिवादीजन ऊँचा मुँह करके ही सामने खड़े हो सकते थे।' र १२ समन्तभद्र-विनिवेदन
समन्तभद्रादि-महाकवीश्वराः कुवादि-विद्या-जय-लब्ध-कीर्तयः।। ई सुतक-शास्त्रामृतसार-सागरा मयि प्रसीदन्तु कवित्वकांक्षिणि ॥
-वरांगचरित्रे, श्रीवर्धमानसूरिः _ 'जो समीचीन-तर्कशास्त्ररूप-अमृतके सार-सागर थे और है कुवादियों ( प्रतिवादियों ) की विद्यापर जयलाभ करके यशस्वी
हुए थे वे महाकवीश्वर-उत्तमोत्तम नूतन सन्दर्भोकी रचना : करनेवाले स्वामी समन्तभद्र मुझ कविता-कांक्षीपर प्रसन्न होवेंउनकी विद्या मेरे अन्तःकरणमें स्फुरायमान होकर मुझे सफलमनोरथ करे, यह मेरा एक विशेष निवेदन है।'
श्रीमत्समन्तभद्रादिकवि-कुञ्जर-सञ्चयम् । . मुनिवन्यं जनानन्दं नमामि वचनश्रियै ।।
-अलंकारचिन्तामणौ, श्रीअजितसेनाचार्यः 'मुनियोंके द्वारा वन्दनीय और जगतजनोंको आनन्दित करनेवाले कविश्रेष्ठ श्रीसमन्तभद्र आचार्यको मैं अपनी 'वचनश्री' के लिये वचनोंकी शोभा बढ़ाने अथवा उनमें शक्ति उत्पन्न करनेके लिये-नमस्कार करता हूँ-स्वामी समन्तभद्रका यह वन्दनआराधन मुझे समर्थ लेखक तथा प्रवक्ता बनाने में समर्थ होवे।'
श्रीमत्समन्तभद्राद्याः काव्य-माणिक्यरोहणाः । सन्तु नः संततोत्कृष्टाः सूक्तिरत्नोत्करप्रदाः ।।
-यशोधरचरिते, श्रीवादिराजसूरिः &++Se++ ++eere k+++KE+Hot+ree++ ++ ++
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