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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ 2++Se++S++88++30++ ++20++ ++ ++30++S++ ++ १० समन्तभद्र-माहात्म्य--
वन्द्यो भस्मक-भस्मसात्कृतिपटुः पद्मावतीदेवतादत्तोदात्तपद-स्वमंत्रवचन-व्याहूत-चन्द्रप्रमः । प्राचार्यस्स समन्तभद्रगणभृद्येनेह काले कलौ जैनं वर्त्म समन्तभद्रमभवद्भद्रं समन्तान्मुहुः ॥
-श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० ५४ (६७) 'मुनिसङ्घके नायक वे आचार्य समन्तभद्र वन्दना किये जानेके योग्य हैं जो अपनी 'भस्मक' व्याधिको भस्मीभूत करने में बड़ी है युक्तिके साथ निर्मूल करने में प्रवीण हुए हैं, पद्मावती नामकी + दिव्यशक्तिके प्रभावसे जिन्हें उच्चपदकी प्राप्ति हुई थी, जिन्होंने * अपने मंत्ररूप वचनबलसे-योगसामर्थ्यसे-बिम्बरूप में चन्द्र* प्रभ भगवान्को बुला लिया था-अर्थात् चन्द्रप्रभ-बिम्बका आकर्षण ( आविर्भाव ) किया था और जिनके द्वारा सर्वहितकारी
जैनमार्ग (स्याद्वादमार्ग) इस कलिकालमें पुनः सब ओरसे भद्ररूप * हुआ है-उसका प्रभाव सर्वत्र व्याप्त होनेसे वह सबका हित ।
करनेवाला और सबका प्रेमपात्र बना है।' ___ * श्रीमूलसङ्घ-व्योम्नेन्दुर्भारते भावितीर्थकृद् । देशे समन्तभद्राख्यो मुनि यात्पर्द्धिकः ॥
-विक्रान्तकौरवे, श्रीहस्तिमल्लः ____ * यह पद्य कवि अय्यपार्य के 'जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय' में भी प्रायः ज्योंका त्यों पाया जाता है। उसमें चौथा चरण 'जीयात्प्राप्तपदद्धिकः' दिया है। ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++
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