Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 59
________________ C++KE++S++ ++ ++ ++CC++ ++ ++ ++ ++ ++ सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ 2 प्रसिद्ध सिद्धि-स्वात्मोपलब्धि के लिए जो सिद्धसाधनी है+ अमोघ उपायस्वरूपा है-और घोर तथा प्रनुर दुःखोंके समुद्र से पार तारनेके लिये समर्थ है, उस समन्तभद्रभारती की मैं शुद्ध हृदयसे प्रशंसा करता हूँ।' सान्त-साधनाद्यनन्त-मध्ययुक्त-मध्यमां शून्य-भाव-सर्ववेदि-तत्त्व-सिद्धि-साधनीम् । हेत्वहेतुवादसिद्ध-वाक्यजाल-भासुरां मोक्षसिद्धये स्तुवे समन्तभद्रभारतीम् ॥ ७॥ 'सादि-सान्त, अनादिसान्त, सादि-अनन्त और अनादि-अनन्त-रूपसे द्रव्य-पर्यायोंका कथन करने में जो मध्यस्था है-इनका सर्वथा एकान्त स्वीकार नहीं करती-, शून्य (अभाव )तत्त्व, + भावतत्त्व और सर्वज्ञतत्त्वकी सिद्धि में जो साधनीभूत है और हेतु@ वाद तथा अहेतुवाद ( आगम) से सिद्ध हुए वाक्यसमूहसे प्रका* शमान है अर्थात् जो युक्ति और आगम-द्वारा सिद्ध हुए वाक्योंसे देदीप्यमान है, उस समन्तभद्रभारतीकी मैं, मोक्षकी सिद्धिके लिए, । हूँ स्तुति करता हूँ।' व्यापकद्वयाप्तमार्ग-तत्त्वयुग्म-गोचरी पापहारिवाग्विलासि-भूषणांशुका स्तुवे । श्रीकरीं च धीकरी च सर्वसौख्यदायिनी नागराज-पूजितां समन्तभद्रभारतीम् ॥८॥ ........ -कविनागराज-विरचित-स० भारतीस्तोत्रम् । व्यापक-व्याप्यका-गुण-गुणीका-ठीक प्रतिपादन करनेवाले ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++6 ++CE++S++ S++ D++20++ ++ attest+20++Of+Of+ ++20+ +OC++00++S++

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