________________
४१
+++
++
S++
++S++OO++OO++
++20++
++
++
++
++OO++OO++26++OS++
सत्साधु-स्मरण-मगलपाठ ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++28++28++de+Part+m
आप्ततत्त्वविवेचन-आप्तमीमांसा-भी जिसका विषय है, उस समन्तभद्रभारतीका मैं स्तोत्र करता हूँ।'
सूरिसक्तिवन्दितामुपेयतत्त्वभाषिणीं चारुकीर्तिमासुरामुपायतत्त्वसाधनीम् । पूर्वपक्षखण्डनप्रचण्डवाग्विलासनी
संस्तुवे जगद्वितां समन्तभद्रभारतीम् ॥३॥ ___'जो आचार्योकी सूक्तियोंद्वारा वन्दित है-बड़े बड़े आचार्योंने अपनी प्रभावशालिनी वचनावली-द्वारा जिसकी पूजा-वन्दना की है-, जो उपेयतत्त्वको बतलानेवाली है, उपायतत्त्वकी साधनस्वरूपा है, पूर्वपक्षका खण्डन करनेके लिये प्रचण्ड वाग्विलासको लिये हुए है-लीलामात्रमें प्रवादियोंके असत्पक्षका खण्डन कर
देनेमें प्रवीण है-और जगत्के लिये हितरूप है, उस समन्तभद्रहूँ भारतीका मैं स्तवन करता हूँ।'
पात्रकेसरि-प्रभावसिद्धि-कारिणी स्तुवे भाष्यकार-पोषितामलंकृतां मुनीश्वरैः। गृध्रपिच्छ-भाषित-प्रकृष्ट-मंगलार्थिका
सिद्धि-सौख्य-साधनीं समन्तभद्रभारतीम् ॥४॥ ____ 'पात्रकेसरीपर प्रभावकी सिद्धि में जो कारणीभूत हुई-जिस-ई * के प्रभावसे पात्रकेसरी-जैसे महान् विद्वान जैनधर्ममें दीक्षित 2 होकर बड़े प्रभावशाली प्राचार्य बने-, जो भाष्यकार-अकहै लंकदेव-द्वारा पुष्ट हुई, मुनीश्वरों-विद्यानन्द-जैसे मुनिराजों+ द्वारा अलंकृत की गई, गृद्धपिच्छाचार्य (उमाखाति) के कहे हुए ++S++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++00++
++
++
++20++
++
++30++OO++00++OO++
++
++
++3
S++0