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'मत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ P++C++S++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++an
____ 'निर्मलमति श्रीसमन्तभद्र मुनिराजकी वह वाणी, जो अपेक्षा* अनपेक्षा आदिके एकान्तरूप प्रबल गरल (विष ) के उद्रेकको
दलनेवाली है, निरन्तर अनेकान्तरूपी अमृतरसके सिंचनसे खूब वृद्धिको प्राप्त है और सकलादेशों-प्रमाणों तथा विकालादेशोंनयों के आधीन प्रवृत्त हुई है, सब ओरसे तुम्हारे मंगल एवं कल्याणकी प्रदान करनेवाली होवे-उसकी एकनिष्ठापूर्वक उपासना एवं तद्रूप आचरणसे तुम्हारे सब तरफ़ भद्रतामय मंगलका प्रसार होवे। गुणान्विता निर्मलवृत्तमौक्तिका नरोत्तमैः कण्ठविभूषणीकृता। न हारयष्टिः परमेव दुर्लभा समन्तभद्रादिभवा च भारती ॥
-चन्द्रप्रभचरिते, श्रीवीरनन्द्याचार्यः ____ 'गुणोंसे-सूतके धागोंसे गॅथी-हुई, निर्मल गोल मोतियोंसे युक्त और उत्तम पुरुषोंके कण्ठका विभूषण बनी हुई हारयष्टिको-मोतियोंकी मालाको प्राप्त कर लेना उतना कठिन नहीं है जितना कठिन कि समन्तभद्रकी भारती (वाणी) को पा लेनाउसे खूब समझकर हृदयङ्गम कर लेना है, जो कि सद्गुणोंको लिये हुए है, निर्मल वृत्त (वृत्तान्त, चरित्र, आचार, विधान तथा छन्द ) रूपी मुक्ताफलोंसे युक्त है और बड़े बड़े आचार्यों तथा विद्वानोंने जिसे अपने कण्ठका आभूषण बनाया है वे नित्य ही उसका उच्चारण तथा पाठ करने में अपना गौरव औरः अहोभाग्य समझते रहे हैं । अर्थात् स्वामी समन्तभद्रकी वाणी परम दुर्लभ है-उनके सातिशय वचनोंका लाभ बड़े ही भाग्य तथा परिश्रमसे
होता है। &++ ++20+20++ ++20++ ++ S++ ++ ++ ++ ++
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