Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ S++ S+LEC++S++ S++Re+HERO++ ++ C++ S++28++ । प्रकीर्णक-पुस्तकमाला a++ ++20++20++20++30++++ ++ ++ ++ ++26++3 निरन्तर कारणीभूत होवे और उसके प्रसादसे तुम्हारे सम्पूर्ण । दुःख-क्लेश नाशको प्राप्त हो जावे।' ... अद्वैताद्याग्रहोग्रग्रह-गहन-विपनिग्रहेऽलंध्यवीर्याः स्यात्कारामोघमंत्रप्रणयनविधयः शुद्धसद्ध्यानधीराः। डू धन्यानामादधाना धृतिमधिवसतां मण्डलं जैनमग्रयम् बाचः सामन्तभद्रयो विदधतु विविधां सिद्धिमुद्भूतमुद्राः॥ ___-अष्टसहस्रयां, श्रीविद्यानन्दः - स्वामी समन्तभद्र की वाणी-वाक्ततिरूप-सरस्वती अद्वैत-पृथकत्व आदिके एकान्त आग्रहरूपी उग्रग्रह-जन्य गहन • विपत्तिको दूर करनेके लिये अलंध्यवीर्या है-अप्रतिहत-शक्ति है-, स्यात्काररूपी अमोघ मंत्र का प्रणयन करनेवाली है, शुद्ध * सद्ध्यान-धीरा है-निर्दोष परीक्षा अथवा सच्ची जाँच-पड़तालके द्वारा स्थिर है- उद्भूतमुद्रा है-ऊँचे आनन्दको देनेवाली है-, और प्रधान जैनगण्डलके अधिवासी-जैनधर्मके अनुष्ठाता-- भव्य पुरुषोंके धैर्यके लिये अवलम्बन-स्वरूप है-जैनधर्ममें उनकी स्थिरताको दृढ़ करनेवाली है-; वह वाणी लोकमें नाना प्रकारकी सिद्धिका विधान करे- उसका आश्रय पाकर लौकिक जन अपना हित सिद्ध करने में समर्थ होवें।' अपेक्षकान्तादि-प्रबल-गरलोद्रेक-दलिनी प्रवृद्धाऽनेकान्ताऽमृतरस-निषेकाऽनवरतम् । प्रवृत्ता वागेषा सकल-विकलादेश-वशतः -समन्ताभद्रं वो दिशतु मुनिपस्याऽमलमतेः॥ अष्टसहस्रयां, श्रीविद्यानन्दः ++ ++ ++ + ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++E++at++2C++ S++ C+FOR++ C++C++ ++ + ++ S++ ++20++S++C++C++00+ +3 ++ ++

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94