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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ a++ ++ ++ +- ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++S । सम्पूर्ण जिनोक्तधर्मको अपना विषय किये हुए है, एक अद्वितीय
स्तोत्र है, वह बुधजनोंके प्रसन्नचित्तमें सूर्य-चन्द्रमाकी स्थितिपर्यन्त स्थित रहे।
तत्त्वार्थसूत्र-व्याख्यान-गन्धहस्ति-प्रवर्तकः । स्वामी समन्तभद्रोऽभूदेवागमनिदेशकः ॥
-विक्रान्तकौरवे, श्रीहस्तिमल्लः 'स्वामी समन्तभद्र तत्त्वार्थसूत्रके 'गन्धहस्ति' नामक व्याख्यान* के प्रवर्तक ( विधायक) हुए हैं और साथ ही देवागमके'देवागम' नामक प्रन्थके निर्देशक (प्ररूपक) भी हुए हैं।' ७ समन्तभद्र-वाणी
प्रज्ञाधीश-प्रपूज्योज्ज्वलगुणनिकरोद्भूतसत्कीर्तिसम्पद्विद्यानन्दोदयायाऽनवरतमखिलक्लेशनिर्णाशनाय । स्ताद्गौः सामन्तभद्री दिनकररुचिजित्सप्तभंगीविधीद्धा भावाद्येकान्तचेतस्तिमिरनिरसनी वोऽकलङ्कप्रकाशा ॥
-अष्टसहस्रयां, श्रीविद्यानन्दाचार्यः 'श्रीस्वामीसमन्तभद्रकी वाणी-वाग्देवी-प्रज्ञाधीशों-बड़े बड़े बुद्धिमानोंके द्वारा प्रपूजित है, उज्ज्वल गुणोंके समूहसे उत्पन्न हुई सत्कीर्तिरूप सम्पत्तिसे युक्त है, अपने तेजसे सूर्यके तेजको जीतनेवाली सप्तभंगी विधिके द्वारा प्रदीप्त है, निर्मल प्रकाशको लिये हुए है और भाव-अभाव आदिके एकान्तपक्षरूपी हृदयान्धकारको दूर करनेवाली है; वह वाणी तुम्हारी विद्या । (केवलज्ञान) और आनन्द (अनन्त सुख) के उदयके लिये ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
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