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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ a++S++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++08++ ++ है लिये विस्मयकारक है-निःसन्देह समन्तभद्रका 'देवागम' नाम- ई * का प्रवचन जैनसाहित्यमें एक अद्वितीय एवं बेजोड़ रचना है और ।
उसके द्वारा सर्वज्ञ ही नहीं किन्तु जिनेन्द्रदेवका आगम भी लोकमें 8
भन्ने प्रकार व्यक्त होरहा है। इसीसे शुभचन्द्राचार्यने, अपने पांडव+ पुराणमें समन्तभद्रका स्मरण करते हुए, उन्हें “देवागमेन येनाs त्र व्यक्तो देवागमः कृतः” विशेषणके साथ उल्लेखित किया है।'
त्यागी स एव योगीन्द्रो येनाऽक्षय्यसुखावहः। अर्थिने भव्यसार्थाय दिष्टो रनकरण्डकः ॥
... . --पार्श्वनाथचरिते, श्रीवादिराजसूरिः .. .. 'वे ही योगीन्द्र-समन्तभद्र सच्चे त्यागी ( दाता) हुए हैं, + जिन्होंने सुखार्थी भव्यसमूहके लिये अक्षयसुखका कारण धर्महै रत्नोंका पिटारा-रत्नकरण्डक' नामका धर्मशास्त्र-दान किया है
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प्रमाण-नय-निर्णीत-वस्तुतत्त्वमबाधितम् । .. जीयात्समन्तभद्रस्य स्तोत्रं युक्त्यनुशासनम् ॥
- --युक्त्यनुशासन-टीकायां, श्रीविद्यानन्दः । 'श्रीसमन्तभद्रका 'युक्त्यनुशासन' नामका स्तोत्र जयवन्त हो, जो प्रमाण और नयके द्वारा वस्तुतत्त्वके निर्णयको लिये हुए हैं. ₹ और अबाधित है-जिसके निर्णयमें प्रतिवादियोंके द्वारा कोई बाधा नहीं दी जा सकती।' __ यस्य च सद्गुणाधारा कृतिरेषा सुपद्मिनी ।
जिनशतकनामेति योगिनामपि दुष्करा ।।: .. SHO++ +++ ++ ++ ++ ++ ++S++at++ ++ ++
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