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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++S++@++30++S++ ++S++S++Go++GO++8++S++g
दुर्वादुकोक्तितमसा पिहितान्तरालं सामन्तभद्र-वचन-स्फुट-रत्नदीपः ॥
-श्रवणबेल्गोल-शिलाले० नं० १०५ ___ 'श्रीसमन्तभद्रका प्रवचनरूप देदीप्यमान रत्नदीप उस त्रैलोक्यरूप महलको निश्चितरूपसे प्रकाशित करता है जो स्यात्कारमुद्राको लिये हुए समस्तपदार्थोंसे पूर्ण है और जिसके अन्तराल दुर्वादियोंकी उक्तिरूपी अन्धकारसे आच्छादित हैं।'
जीवसिद्धि-विधायीह कृतयुक्त्यनुशासनम् । वचः समन्तभद्रस्य वीरस्येव विज़म्भते ॥
-हरिवंशपुराणे, श्रीजिनसेनसूरिः 'जीवसिद्धिका विधायक और युक्तियों द्वारा अथवा युक्तियों का अनुशासन करनेवाला अर्थात् 'जीवसिद्धि' और 'युक्त्यनुशासन' जैसे ग्रन्थोंके प्रणयनरूप-समन्तभद्रका प्रवचन श्रीवीरके प्रवचनकी तरह प्रकाशमान है अन्तिम तीर्थंकर श्रीमहा
वीर भगवान के बीजभूत वचनोंके समकक्ष है और प्रभावादिकमें * भी उन्हींके तुल्य है।'
श्रीमत्समन्तभद्रस्य देवस्यापि वचोऽनघम् । प्राणिनां दुर्लभं यद्वन्मानुषत्वं तथा पुनः॥
-सिद्धान्तसारसंग्रहे, श्रीनरेन्द्रसेनः 'श्रीसमन्तभद्रदेवका निर्दोष प्रवचन प्राणियोंके लिये ऐसा ही दुर्लभ है जैसा कि मनुष्यत्वका पाना-अर्थात् अनादिकालसे । संसार में परिभ्रमण करते हुए प्राणियोंको जिस प्रकार मनुष्यभव1 का मिलना दुर्लभ होता है उसी प्रकार समन्तभद्रदेवके प्रवचनS++S++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
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