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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ a++SC++C++00++20++ ++++ ++ ++ ++ ++++ है (बलाकपिच्छाचार्यके बाद) श्रीसमन्तभद्र 'जिनशासनके 1 प्रणेता' हुए हैं, वे भद्रमूर्ति थे और उनके वचनरूपी वज्रके
कठोर पातसे प्रतिवादी-रूपी पर्वत चूर-चूर हो गये थे-कोई भी प्रतिवादी उनके सामने नहीं ठहरता था।' समन्तभद्रादिकवीन्द्रभास्वतां स्फुरन्ति यत्राऽमलसूक्तिरश्मयः। व्रजन्ति खद्योतवदेव हास्यतां न तत्र किं ज्ञानलवोद्धता जनाः।
--ज्ञानाणवे, श्रीशुभचन्द्राचार्यः 'श्रीसमन्तभद्र-जैसे कवीन्द्र-सूर्योकी जहाँ निर्मल सूक्ति रूपकिरणे स्फुरायमान होरही हैं वहाँ वे लोग खद्योत-जुगनूकी | तरह हँसीको ही प्राप्त होते हैं जो थोड़ेसे ज्ञानको पाकर उद्धत हैं-कविता (नूतन सन्दर्भकी रचना) करके गर्व करने लगते हैं।' ५ समन्तभद्र-प्रवचननित्यायेकान्तगर्तप्रपतनविवशान्प्राणिनोऽनर्थसार्थादुद्धर्तुं नेतुमुच्चैः पदममलमलं मंगलानामलंध्यम् । स्याद्वाद-न्यायवर्त्म प्रथयदवितथार्थं वचः स्वामिनोऽदः प्रेक्षावत्वात्प्रवृत्तं जयतु विघटिताऽशेषमिथ्याप्रवादम् ॥
-अष्टसहस्रयां, विद्यानन्दाचार्यः 'स्वामी समन्तभद्रका वह निर्दोष प्रवचन जयवन्त हो--अपने है प्रभावसे लोकहृदयोंको प्रभावित करे- जो नित्यादि एकान्त
गोंमें-वस्तु कूटस्थवत् सर्वथा नित्य ही है अथवा क्षण-क्षणमें 20 * निरन्वय विनाशरूप सर्वथा क्षणिक ही है, इस प्रकारकी मान्य• तारूपी एकान्त खड्डों में पड़ने के लिये विवश हुए प्राणियोंको &++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++S
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