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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला - ++ ++ ++ ++20+23++ ++++ ++30+- ++30+g
का लाभ होना भी दुर्लभ है, जिन्हें उसकी प्राप्ति होती है वे निःसन्देह सौभाग्यशाली हैं।'
६ समन्तभद्र-प्रणयन
समन्तभद्रादिमहाकवीश्वरैः कृतप्रवन्धोज्वल-सत्सरोवरे । १ लसद्रसालङ्कृति-नीर-पङ्कजे सरस्वती क्रीडति भाव-बन्धुरे॥
........ --शृङ्गारचन्द्रिकायां, श्रीविजयवर्णी ___ 'महाकवीश्वर श्रीसमन्तभद्र के द्वारा प्रणयन किये गये प्रबन्धसमूह ( वाङमय ) रूप उस उज्वल सत्सरोवर में, जो रसरूप जल तथा अलङ्काररूप कमलोंसे सुशोभित है और जहाँ भावरूप + हंस विचरते हैं, सरस्वती क्रीड़ा करती है अर्थात् स्वामी
समन्तभद्रके प्रन्थ रस तथा अलङ्कारोंसे सुसज्जित हैं, सद्भावोंसे परिपूर्ण हैं और सरस्वती देवीके क्रीडास्थल हैं-विद्यादेवी उनमें
विना किसी रोक-टोकके स्वच्छन्द विचरती है अर्थात् वे उसके , उपाश्रय हैं। इसीसे महाकवि श्रीवादीभसिंहसूरिने, . गद्य
चिन्तामणिमें समन्तभद्रका "सरस्वती-स्वैर-विहारभूमयः"विशेषणहै के साथ स्मरण किया है।'
स्वामिनश्चरितं तस्य कस्य नो विस्मयावहम् । देवागमेन सर्वज्ञो येनाऽद्यापि प्रदर्श्यते ॥
... -पार्श्वनाथचरिते, श्रीवादिराजसूरिः । 'उन स्वामी ( समन्तभद्र) का चरित्र किसके लिये विस्मयकारक-आश्चर्यजनक नहीं है, जिन्होंने 'देवागम' नामके अपने
प्रवचन-द्वारा आज भी सर्वज्ञको प्रदर्शित कर रक्खा है ? सभीके. S++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
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