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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला aree++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++S++g है आप्तमार्गके दो तत्त्व-हेयतत्त्व, उपादेयतत्त्व अथवा उपेयतत्त्व
और उपायतत्त्व-जिसके विषय हैं, जो पापहरणरूप आभूषण और वाग्विलासरूप वस्त्रको धारण करनेवाली है। साथ ही, श्रीसाधिका, बुद्धि-वर्धिका और सर्वसुख-दायिका है, उस नागराजपूजित समन्तभद्रभारतीकी मैं स्तुति करता हूँ।'
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६ समन्तभद्र-शासन
लक्ष्मीभृत्परमं निरुक्तिनिरतं निर्वाणसौख्यप्रदं कुज्ञानातपवारणाय विधृतं छत्रं यथा भासुरम् । संज्ञानर्नययुक्तिमौक्तिकफलैः संशोभमानं परं वन्दे तद्धतकालदोषममलं सामन्तभद्रं मतम् ॥
--देवागमवृत्तौ, श्रीवसुनन्दिसूरिः 'श्रीसमन्तभद्रके उस निर्दोष मतकी-मैं वन्दना करता हूँउसे श्रद्धा और गुणज्ञता-पूर्वक प्रणामाञ्जलि अर्पण करता हूँहूँ जो श्रीसम्पन्न है, उत्कृष्ट है, निरुक्ति-परायण है-व्युत्पत्ति
विहीन शब्दोंके प्रयोगसे रहित है-, मिथ्याज्ञानरूपी अातापको मिटाने के लिये विधिपूर्वक धारण किये हुए देदीप्यमान छत्रके समान है, सम्यग्ज्ञानों-सुनयों तथा सुयुक्तियोंरूपी मुक्ताफलोंसे परम सुशोभित है, निर्वाण-सौख्यका प्रदाता है और जिसने काल
दोषको ही नष्ट कर दिया था अर्थात् स्वामी समन्तभद्रमुनिके * प्रभावशाली शासनकालमें यह मालूम नहीं होता था कि आजकल
कलिकाल बीत रहा है।'
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