Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 48
________________ C++ P++ ++26++ C++26++ E++ ++26++26++Re++ ३२ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला g++20++GS++ ++++S++S++S++ ++ ++ ++ ++ है अनर्थ-समूहसे निकालकर मंगलमय उच्चपदको प्राप्त करानेके है लिये समर्थ है, स्याद्वाद-न्यायके मार्गको प्रख्यात करनेवाला है, सत्यार्थ है, अलंध्य है, परीक्षापूर्वक प्रवृत्त हुआ है अथवा प्रेक्षावान्–समीक्ष्यकारी आचार्यमहोदयके द्वारा जिसकी प्रवृत्ति हुई है और जिसने सम्पूर्ण मिथ्याप्रवादको विघटित-तितरवितर-कर दिया है।' विस्तीर्ण-दुर्नयमय-प्रबलान्धकारदुर्बोध-तत्त्वमिह वस्तु हितावबद्धम् । व्यक्तीकृतं भवतु नस्सुचिरं समन्तात् सामन्तभद्र-वचन-स्फुट-रत्नदीपेः ॥ -न्यायविनिश्चयालंकारे, वादिराजसूरिः 'फैले हुए दुर्नयरूपी प्रबल अन्धकार के कारण जिसका तत्त्व लोकमें दुर्बोध हो रहा है-ठीक समझमें नहीं आता-वह हितई कारी वस्तु-प्रयोजनभूत-जीवादि-पदार्थमाला-श्रीसमन्तभद्र के : वचनरूपी दंदीप्यमान रत्नदीपकोंके द्वारा हमें सब ओरसे . चिरकाल तक स्पष्ट प्रतिभासित होवे अर्थात् स्वामी समन्तभद्रका * प्रवचन उस महाजाज्वल्यमान रत्नसमूहके समान है जिसका प्रकाश * अप्रतिहत होता है और जो संसारमें फैले हुए निरपेक्ष नयरूपी महामिथ्यान्धकारको दूर करके वस्तुतत्त्वको स्पष्ट करने में समर्थ * है, उसे प्राप्त करके हम अपना अज्ञान दूर करें।' स्यात्कार-मुद्रित-समस्तपदार्थ-पूर्ण त्रैलोक्य-हर्म्यमखिलं स खलु व्यनक्ति । ++26++2C++26++ ++ ++ 8++20++2C++ ++ ++ ++ ++20++ ++ E++26+++20++00++ +++26++3 C++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++

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