Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 43
________________ २७ S++ C++EE++EC++ ++20++ ++26++ C++CE++ST++ ++ ++ सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ 8++29++ ++ ++ ++ ++++ ++20++20++ ++ ++ . भूमंडलपर-तीर्थकर होंगे, उन श्रीसमन्तभद्रको मेरा अभिवन्दन है-सादर नमस्कार है।' समन्तभद्रनामानं मुनि भाविजिनेश्वरम् । स्वयम्भूस्तुतिकर्तारं भस्मव्याधि-विनाशनम् ॥ दिगम्बरं गुणागारं प्रमाणमणिमण्डितम् । विरागद्वेषवादादिमनेकान्तमतं नुमः ॥ -मुनिसुव्रतपुराणे, कविकृष्णदासः 'जो स्वयम्भूस्तोत्रके रचयिता हैं, जिन्होंने भस्मव्याधिका विनाश किया था--अपने भस्मकरोगको बड़ी युक्तिसे शान्त किया * था-, जिनके वचनादिकी प्रवृत्ति रागद्वेषसे रहित होती थी, 'अनेकान्त' जिनका मत था, जो प्रमाण-मणिसे मण्डित थे-- प्रमाणतारूप-मणियोंका जिनके सिरपर सेहरा बँधा हुआ थाअथवा जिनका अनेकान्तमत प्रमाणमणिसे सुशोभित है और जो भविष्यकालमें जिनेश्वर (तीर्थंकर ) होनेवाले हैं, उन गुणोंके भण्डार श्रीसमन्तभद्र नामके दिगम्बर मुनिराजको हम प्रणाम करते हैं। २ समन्तभद्र-स्तवन समन्तभद्रं सद्बोधं स्तुवे वर-गुणालयम् । निमलं यद्यशष्कान्तं बभूव भुवनत्रयम् ॥ -जिनशतकटीकायां, श्रीनरसिंहभट्टः _ 'जो सद्बोध-स्वरूप थे-सम्यग्ज्ञानकी मूर्ति थे-, श्रेष्ठ गुणोंके आवास थे-उत्तमगुणोंने जिन्हें अपना आश्रयस्थान बनाया थाO++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ S++ee++EO++ ++ ++ S++ ++ S++ ++ 8++ ++ ++ ++ S++ ++ S++ ++ ++

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