Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ १८ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला ·00+++++++ को — द्वादशाङ्गश्रुतको — उत्तमरूपसे धारण किया है, जो सुशब्दोंकी रचना सुन्दर है ।' 'श्रुतकेवली मुनीश्वरों में अन्तिम होते हुए भी, श्रीभद्रबाहुस्वामी, संपूर्णश्रुतके अर्थका प्रतिपादन करनेसे, विद्वज्जनोंके प्रथम नेता हुए हैं - अपने बाद के सभी विद्वानों में प्रधान हुए हैं ।' निरन्तरानन्त-गतात्मवृत्तिं निरस्त - दुर्बोध- तमोवितानम् । श्रीभद्रबाहूष्णकरं विशुद्धं विनंनमीमीहितशात - सिद्ध्यै । — भद्रबाहुचरित्रे, श्रीरत्ननन्दी 'जिनकी आत्मप्रवृत्ति निरन्तर ही अनन्तस्वरूप परमात्माकी ओर रही है- जिन्होंने परमात्मगुणोंकी प्राप्ति के लिये सदा ही कदम बढ़ाया है - और मिथ्याज्ञानरूप अन्धकारके विस्तार (समूह) को दूर किया है उन निर्मलसूर्य श्रीभद्रबाहु - स्वामीको मैं, इच्छित निराकुल सुखकी सिद्धिके लिये, बहुत ही विनम्र होकर नमस्कार करता हूँ ।' ++00++00 ६ श्रीगुणधर- स्मरण mehr ohnefs afecho ahme जेहि कसायपाहुडमणेय रायमुज्जलं अतत्थं । गाहाहि विवरियं तं गुणहर - भट्टारयं वंदे || -जयधवलायां, श्रीवीरसेनः 'जिन्होंने अनेक नयसे युक्त, उज्ज्वल और अनन्त पदार्थोंको लिये हुए कषायप्राभृतको गाथाओं के द्वारा विवृत ( व्यक्त) किया है G++C++

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94