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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++29++30++ +-00++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ स्थितिसे--जरासे होनेवाली शिथिलताको तिरस्कृत किया है, अब्रह्म ( कामदेव) के प्रसारको नष्ट कर दिया है और निर्मलज्ञानके द्वारा ब्रह्मचर्यके प्रसारको बढ़ाया है, उन श्रीभूतबलि आचार्यको प्रणाम करो-वे सभीके प्रणाम-योग्य हैं।
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श्रीकुन्दकुन्द-स्मरण वन्यो विभु वि न कैरिह कौण्डकुन्दः कुन्द-प्रभा-प्रणयि-कीर्ति-विभूषिताशः। यश्चारुचारण-कराम्बुज-चञ्चरीक
य भरते प्रयतः प्रतिष्ठाम् ॥
-श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० ५४ . 'जिनकी कुन्द-कुसुमकी प्रभाके समान शुभ्र एवं प्रिय कीर्तिसे दिशाएँ विभूषित हैं-सब दिशाओंमें जिनका उज्ज्वल और
मनोमोहक यश फैला हुआ है-, जो प्रशस्त चारणोंके–चारण। ऋद्धिधारक महामुनियोंके करकमलोंके भ्रमर हैं और जिन्होंने
भरतक्षेत्रमें श्रुतकी-आगम-शास्त्रकी--प्रतिष्ठा की है, वे पवित्रात्मा * स्वामी कुन्दकुन्द इस पृथ्वीपर किनसे वन्दनीय नहीं हैं ?—सभीके
द्वारा वन्दना किये जानेके योग्य हैं।' तस्यान्वये भूविदिते बभूव यः पअनन्दि-प्रथमाभिधानः । श्रीकोण्डकुन्दादि-मुनीश्वराख्यस्सत्संयमादुद्गत-चारणद्धिः॥
-श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० ४० &+ ++ ++S++ ++S++++S++S++ ++ ++Se++S
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