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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला ++ ++ ++++ ++ ++
१२ श्रीपुष्पदन्त-स्मरण
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पणमामि पुष्पदंतं दुकयंतं दुरणयंधयार-रविं । भग्गसिव-मग्ग-कंटयमिसि-समिइ-वई सया दंतं ॥
-धवलायां, श्रीवीरसेनः ___'जो दुष्कृतों-पापोंका अन्त करनेवाले हैं, दुर्नयरूप अन्धकार
को दूर करने के लिये सूर्यसमान हैं, जिन्होंने शिवमार्गके कण्टकों| मोक्षपथके बाधककारणोंको नष्ट किया है, जो ऋषियोंकी समिति . (सभा) के स्वामी थे और सदा ही दमनशील थे--पंचेन्द्रियोंकों । अपने वशमें रखनेवाले थे, उन श्रीपुष्पदन्त आचार्यको मैं प्रणाम
करता हूँ।
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श्रीभूतबलि-स्मरण
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पणमह कय-भूय-बलिं भूयवलिं केस-चास-परिभूय-चलि ।। विणिहय-चम्मह-पसरं वडाविय-विमल-णाण-चम्मह-पसरं ॥
. -धवलायां, श्रीवीरसेनः . 'जो भूतों-सर्वप्रणियों अथवा व्यन्तर जातिके भूत नामक । देवोंसे पूजे गये हैं, जिन्होंने अपने केशपाशसे-बालोंकी सुन्दर &++ ++S++ ++O SO++S++ ++S++S++S++ ++S
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