Book Title: Satsadhu Smaran Mangal Path
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ प्रकीर्णक पुस्तकमाला C++++++ दया-दम-त्याग-समाधिनिष्ठं नय-प्रमाण - प्रकृताञ्जसार्थम् । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवादैर्जिन त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥ युक्त्यनुशासने, श्रीसमन्तभद्रः 'हे वीर जिन ! आपका मत - शासन - नय - प्रमाणके द्वारा वस्तु-तत्वको बिल्कुल स्पष्ट करनेवाला और सम्पूर्ण प्रवादियोंसे बाध्य होने के साथ साथ दया (अहिंसा), दम ( संयम ), त्याग और समाधि ( प्रशस्त ध्यान ) इन चारोंकी तत्परताको लिये हुए है। यही सब उसकी विशेषता है, और इसीलिये वह अद्वितीय है।' १४ सर्वान्तवत्तद्गुण-मुख्य कल्पं सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव — युक्त्यनुशासने, श्रीसमन्तभद्रः - 'हे वीर प्रभु! आपका प्रवचनतीर्थ - शासन - सर्वान्तवान् हैसामान्य, विशेष, द्रव्य, पर्याय, विधि, निषेध, एक, अनेक, आदि अशेष धर्मोंको लिये हुए है - और वह गुण - मुख्यकी कल्पनाको साथ में लिये हुए होने से सुव्यवस्थित है - उसमें असंगतता अथवा विरोधके लिये कोई अवकाश नहीं है--जो धर्मो में परस्पर अपेक्षाको नहीं मानते उन्हें सर्वथा निरपेक्ष बतलाते हैं - उनके शासन में किसी भी धर्मका अस्तित्व नहीं बन सकता और न पदार्थ-व्यवस्था ही ठीक बैठ सकती है। अतः आपका ही यह शासन तीर्थ सर्वदुःखों का अन्त करनेवाला है, यही निरन्त हैकिसी भी मिथ्यादर्शन के द्वारा खण्डनीय नहीं है - और यही सब प्राणियोंके अभ्युदयका कारण तथा आत्मा के पूर्ण अभ्युदय G++++C++++C++€++++C++€++C++++? II

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94