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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला Ca++++++26++23++++++++26++a++23++S++ • अनन्तविज्ञानमतीत-दोषमबाध्य-सिद्धान्तममय-पूज्यम् । श्रीवर्द्धमानं जिनमाप्तमुल्यं स्वम्भुवं स्तोतुमहं यतिष्ये ॥
-अन्ययोगव्यवच्छेदिकायां, श्रीहेमचन्द्रः ___ 'जो अनन्त-विज्ञान-स्वरूप हैं. दोषोंसे-राग-द्वेष-काम* क्रोधादि विकारोंसे रहित हैं, जिनका सिद्धान्त (आगम) अबाध्य - है-वादी प्रतिवादीके द्वारा अखण्डनीय है-, जो देवोंसे पूज्य + हैं और स्वयम्भू हैं--स्वयं ही विना किसी दूसरेके उपदेशके मोक्ष* मार्गको जानकर तथा उसका अनुष्ठान कर आत्म-विकासको प्राप्त
हुए हैं-उन प्राप्त-पुरुषोंमें मुख्य श्रीवर्धमान जिनेन्द्र के स्तवनका मैं यत्न करता हूँ।'
स्थेयाजातजयध्वजाऽप्रतिनिधिः प्रोद्भतभरिप्रभुः प्रध्वस्ताऽखिल-दुनय-द्विषदिभः सन्नीतिसामर्थ्यतः । सन्मार्गस्त्रिविधः कुमार्ग-मथनोऽर्हन्वीरनाथः श्रिये शश्वत्संस्तुति-गोचरोऽनघधियां श्रीसत्यवाक्याधिपः॥
-युक्तयनुशासन-टीकायां, श्रीविद्यानन्दः 'जो जयध्वज प्राप्त करनेवालोंमें अद्वितीय हैं, जिनके महान् सामर्थ्य अथवा महती प्रभुताका प्रादुर्भाव हुआ है, जिन्होंने
सन्नीतिकी-अनेकान्तमय स्याद्वाद-नीतिकी-सामर्थ्यसे संपूर्ण ॐ दुर्नयरूप शत्रुगजोंको ध्वस्त (विनष्ट) कर दिया है; जो त्रिविध, प्रभु और उनके शासनका वैशिष्टय स्थापन करनेवाली अपूर्व स्तुति की है। - यह ग्रन्थ 'समन्तभद्रभारती' नामका जो महान् ग्रन्थ वीरसेवामन्दिरसे में प्रकाशित होनेवाला है उसमें सानुवाद प्रकट होगा। _++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
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