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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++ ++ ++ ++ ++ ++++8++23++26++28++2C++ • सन्मार्ग-स्वरूप हैं - सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यकचारित्रकी : साक्षात् मूर्ति हैं- जिन्होंने कुमार्गोको मथन कर डाला है; जो
सदा कलुषित-आशयसे रहित सुधीजनोंकी संस्तुतिका विषय बने । - हुए हैं और श्रीसम्पन्न-सत्यवाक्योंके अधिपति अथवा आगमके
स्वामी हैं, वे अर्हन्त भगवान् श्रीवीर प्रभु कल्याणके लिये स्थिर रहें-चिरकाल तक लोक-हृदयोंमें निवास करें।' ३ वीर-शासनाभिनन्दन
तव जिन शासन-विभवो जयति कलावपि गुणाऽनुशासन-विभवः । दोष-कशाऽसनविभवः स्तुवन्ति चैनं प्रभा-कृशाऽऽसनविभवः ।।
त्वयम्भूस्तोत्रे, श्रीसमन्तभद्रः ... (हे वीर जिन !) आपका शासन-माहात्म्य-आपके प्रवचनका यथावस्थित पदार्थोके प्रतिपादन-स्वरूप गौरव-कलिकालमें भी
जयको प्राप्त है-सर्वोकृष्टरूपसे वर्त रहा है-, उसके प्रभावसे + गुणोंमें अनुशासन-प्राप्त शिष्यजनोंका भव विनष्ट हुआ है
संसार-परिभ्रमण सदाके लिये छूटा है-इतना ही नहीं, किन्तु जो है दोषरूप चाबुकोंका निराकण करने में समर्थ हैं-चाबुककी तरह
पीडाकारी काम-क्रोधादि दोषोंको अपने पास फटकने नहीं देते, और अपने ज्ञानादि तेजसे जिन्होंने आसन-विभुओंको-लोकके
प्रसिद्ध नायकों(हरि-हरादिकों) को-निस्तेज किया है वे-गणधरमें देवादि महात्मा भी आपके इस शासन-माहात्म्यको स्तुति करते हैं।' ++20++20++ ++ ++S++8++ ++ ++ ++ ++
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