________________
सत्साधु-स्मरणमंगलपाठ ++ ++ ++ ++
a++
++
S++
S++
++
++
++
+
++8++
नित्यकी प्रात्म-प्रार्थना
++
..omatomonion+on++
++
++
++20++
++
++
++S
++
++
शास्त्राऽभ्यासो जिनपति-नुतिः सङ्गतिः सर्वदायः सद्वृत्तानां गुण-गण-कथा दोषवादे च मौनम् । सर्वस्याऽपि प्रिय-हित-वचो भावना चाऽऽत्मतत्त्वे सम्पद्यन्तां मम भव-भवे यावदेतेऽपवर्गः ॥
-जैन नित्यपाठ 'जब तक मुझे अपवर्गकी-मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती तब तक भव-भवमें-जन्म-जन्ममें-मेरा शास्त्र-अभ्यास बना रहे-मैं * ऐसे ग्रन्थोंके स्वाध्यायसे कभी न चूकूँ जो अाप्त-पुरुषोंके कहे हुए 2 अथवा प्राप्तकथित विषयका प्रतिपादन करनेवाले हों, तत्त्वके
उपदेशको लिये हुए हों, सर्वके लिए हितरूप हों, अबाधित सिद्धान्त हों और कुमार्गसे हटाने वाले हों-; साथ ही, जिनेन्द्र
के प्रति मैं सदा ही नम्रीभूत रहूँ-सर्वज्ञ, वीतराग और परम* हितोपदेशी श्रीजिनदेवके गुणोंके प्रति मेरे हृदयमें सदा ही
भक्तिभाव जाग्रत रहे- मुझे नित्य ही आर्यपुरुषोंकी-सत्पुरुषोंहै की- संगतिका सौभाग्य प्राप्त होवे-कुसङ्गतिमें बैठने अथवा
दुर्जनोंके सम्पर्क में रहकर उनके प्रभावसे प्रभावित होनेका । कभी भी अवसर न मिले-; सच्चरित्र-पुरुषोंकी गुण-गण-कथा /
ही मुझे सदा आनन्दित करे--मैं कभी भी विकथाओंके कहने2 सुनने में प्रवृत्त न होऊँ-; दोषोंके कथनमें मेरी जिह्वा सदा ही मौन ++car++ ++ ++ ++ ++++ee++ ++S++ ++ ++
+++
++
++
++28 ++S++2C++
++
++S++
++20+ +
&++