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सत्साधु-स्मरणमंगलपाठ ++20++20++30++ ++26++++ ++ ++ ++ ++ ++ है अशुद्ध करनेवाले क्रोध, कामादिविकार, मद और विषाद हैं, ये । जिनके नष्ट होजाते हैं उनका मुख उक्ततीनों-अताम्रनयनोत्पलत्व,
कटाक्षशरमोक्षहीनत्व,सदाप्रहसितायमानत्व-विशेषणोंसे विशिष्ट हो जाता है। जिनेन्द्रका मुख चूँकि इन तीनों विशेषणोंसे विभू- । षित है इसलिये वह उनके हृदयकी उस शाश्वती 'शुद्धि'को • स्पष्ट घोषित करता है जो काम, क्रोध, मद और विषादादिका * सर्वथा अभाव हो जानेसे सम्पन्न होती है। हृदयशुद्धिकी इस
कसौटी अथवा माप-दण्डसे दूसरोंके हृदयकी शुद्धिका भी कितना ही अन्दाज़ा और पता लगाया जा सकता है।'
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सत्साधु-वन्दन
+HD+जियभय-जिय उवसग्गे जियइंदिय-परिसहे जियकसाए । जियराय-दोस-मोहे जियसुह-दुक्खे णमंसामि ॥
--योगिभक्ती, श्रीकुन्दकुन्दाचार्यः _ 'जिन्होंने भयोंको जीत लिया-जो इस लोक, परलोक तथा
आकस्मिकादि किसी भी प्रकारके भयके वशवर्ती होकर अपने पदसे, कर्तव्यसे, व्रतोंसे, न्याय्य-नियमोंसे च्युत नहीं होते, न 2 अन्याय-अत्याचार तथा पर-पीडनमें प्रवृत्त होते हैं और न किसी + तरहकी दीनता ही प्रदर्शित करते हैं। जिन्होंने उपसर्गोको जीत
लिया-जो चेतन-अचेतन-कृत उपसर्गो-उपद्रवोंके उपस्थित ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
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