Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 12
________________ तिब्बत - नरेश का राष्ट्र - प्रेम दशवीं शताब्दी की बात है, अत्यन्त महान् और अत्यन्त तेजस्वी तिब्बत के राजा जशीहोड़ बड़े ही राष्ट्र - भक्त तथा संस्कृति - प्रेमी नरेश थे। वे अपने पिछड़े हुए देश का उद्धार करना चाहते थे, और इसके लिए मानवता के महान् कलाकार श्री आचार्य दीपंकर विज्ञान को भारत के विक्रमशिला विद्यापीठ से अपने देश में बुलाना चाहते थे। उन्होंने प्रतिज्ञा की, कि 'आचार्यजी' को बुला कर उनके हाथों तिब्बत का उद्धार कराऊँगा, भले ही इसके लिए मुझे कुछ भी कष्ट उठाना पड़े।' उक्त दृढ़ निश्चय के बाद, आचार्यजी को बुलाने के लिए विद्वानों का एक दल भारत भेजा, और स्वयं सोने की खोज में निकल पड़े। क्योंकि तिब्बत के राजकोष में जितना सोना था, आचार्य दीपंकर के स्वागत में तथा उनके द्वारा होने वाले शिक्षाप्रचार में, उससे अधिक सोना खर्च होने का अनुमान था। उन दिनों नेपाल के समीप राजा गारलंग के राज्य में सोने की एक खान निकली थी। तिब्बत नरेश उस ओर ही चल पड़े। गारलंग बौद्ध-धर्म का कट्टर दुश्मन था और साथ ही उसे तिब्बत नरेश से चिढ़ भी थी। अतः उसने धोखे से तिब्बत नरेश को बंदी बना कर घोषणा की कि यदि मुझे जशीहोड़ के बराबर सोना मिलेगा, तो मैं उन्हें मुक्त करूगा, अन्यथा प्राण - दण्ड दूंगा। तिब्धत-नरेश का राष्ट्र-प्रेम : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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