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शाश्वत - स्वर
क्षण - क्षण भंगुर होते तन में, शाश्वत का स्वर बोल रहा है। कौन मर्त्य है, कौन अमृत है, चूंघट के पट खोल रहा है। जन्मा, फिर भी रहा अजन्मा, मरकर भी मैं अमर रहा हूँ । नश्वर अन्य, अनश्वर चित् मैं, चर हो कर भी अचर रहा हूँ।
मधुमय जीवन
जीवन का कण - कण मधुमय हो, मधुरस क्षिति पर बरसाओ। अन्दर में अपने प्रसुप्ततम, ज्योतिर्मय - भाव जगाओ ॥
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सागर के मोती:
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