Book Title: Sagar ke Moti Author(s): Amarmuni Publisher: VeerayatanPage 83
________________ ७२ Jain Education International सार्थक जन्म शुचि कर्मों की दीपमालिका, हरेगी । जग का तमस् स्नेह, शील, शान्ति, सुख की जय लक्ष्मी घर - घर में विचरेगी || तम की कारा तोड़, ज्योति केअलाओ । जग मग दीप मानव जन्म तभी है सार्थक, जब मानव बन जाओ ॥ - - मन की विराटता जीवन की प्रिय मधुशाला में, मधुरस की कुछ कमी नहीं है । पीओ और पिलाओ जी-भर, लघु मन करना ठीक नहीं है || मन की लघुता जैसा कोई, जग में दूजा पाप नहीं है । और महत्ता जैसा कोई, अन्य सुपावन पुण्य नहीं है || For Private & Personal Use Only सागर के मोती : www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96