Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 94
________________ बांस का उत्तर सुनकर आम मन ही मन सोच उठा - " सच, है, उद्धत को जीतने के लिए विनय की जरूरत होती है ।" • जिस जीवन में एक क्षण का महत्त्व नहीं है, वहाँ पूरे जीवन काही महत्त्व नहीं है । क्षण हमारी जीवन पुस्तक का एक पृष्ठ है, और इस पृष्ठ के अतिरिक्त पुस्तक है ही क्या ? सैकड़ों पृष्ठों का समवाय ही तो पुस्तक है । असंख्य बूदों का मिलन सागर है, सौ पैसे का योग एक रुपया है और कुछ क्षणों की श्रृंखला ही जीवन है । • अच्छाई और बुराई, पाप और पुण्य वस्तु में नहीं है। पुण्यपाप मनुष्य के मन में है । मनुष्य यदि फूल चुनना चाहे, तो वे संसार के उपवन में हैं और कांटे बीनने चाहे तो वे भी । ● जो व्यक्ति सोचता है, पर करता नहीं, मार्ग बताता हैं पर स्वयं चलता नहीं, उसका विचार और ज्ञान शून्य है, सत्वहीन है । • मैं देखता हूँ कि जो तस्वीरें स्वयं स्थिर नहीं रह सकती उन्हें किसी दीवार के सहारे लटकाया जाता है और जो व्यक्ति अपने पुरुषार्थं के सहारे कुछ कर नहीं सकते, उन्हें दूसरों के इशारे पर चलाया जाता है । ० सुखी बनने का अर्थ है- आत्म निर्भर बनना । • कर्म ही जीवन है । निष्क्रिय मनुष्य आलसी होता है और आलसी क्षुद्रजीवी होता है और कर्मशील सदा युवा अमर - डायरी ! Jain Education International For Private & Personal Use Only ८३ www.jainelibrary.org

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