Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ संयोग हो, तो वह दान, महान् दान बन जाता है। • आज से लगभग हजार वर्ष पहले गुजरात का महामन्त्री तेजपाल हो गया-जिसने देलवाड़ा (आबू) के विश्व प्रसिद्ध जैन मंदिरों के रूप में भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत शिल्प चमत्कार अंकित करवाया। मंत्री तेजपाल की धर्मपत्नी थी अनुपमा देवी। बड़ी उदार, सुशील और मधुर-भाषिणी ! अनुपमा देवी एक बार मुनियों को घृतदान कर रही थी कि इधर-उधर की भीड़भाड़ एवं प्रमाद से एक मुनि के हाथ से घृतपात्र छूट कर देवी की पीठ पर आ गिरा। बहुमूल्य कौशेय वस्त्र घी से लथपथ हो गया। __ मंत्री तेजपाल ने यह सब देखा तो, उनकी आँखों में क्रोध की अरुणिमा चमक उठी। वे मुनि के अविवेक पर कुछ बोलने को ही थे, कि देवी ने मंत्री के क्रोध को शान्त करते हुए कहा-"देव ! यह आपकी ही कृपा है कि मुझे यों मुनि-जनों के द्वारा गिराए गए घृतपान से घृताभ्यंग (घत-स्नान ) करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं तो धन्य हो गई। वस्त्रों का क्या है ? यदि आप हलवाई होते और मैं आपकी हलवाइन, तो ये वस्त्र तो रोज ही घी-तेल से गन्दे होते ही न ?" देवी की मधु-सी मीठी वाणी सुनी, तो मंत्री का कोप शान्त हो गया। मंत्री के कोप से आशंकित सभी दर्शक देवी की सहिष्णुता, विनम्रता और मधुर - वाणी पर मुग्ध हो गए। अमर • डायरी: ८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96