Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 90
________________ ० मनुष्य पाप क्यों करता है ? मनुष्य के पेट का गड्ढा-जिसे संस्कृत में उदरदरी भी कहते हैं, बहुत छोटा है, सीमित है, किंतु मन का गड्ढा मनोदरी, उदरदरी से बहुत बड़ा है, असीम है और उसी को भरने के लिए अधिकांश पाप होते हैं। पर, आश्चर्य यह है कि पाप करके भी आज तक कोई उस गड्ढे को भर नहीं पाया है। ० प्रसिद्ध सन्त डायोजिनीज ने एक बार उदरदरी को भरने के लिए संलग्न मनुष्यों को लक्ष्य करके कहा था-"जिन घरों में सामग्री भरी होती है, उनमें चूहे भरे हो सकते हैं। उसी तरह जो लोग बहुत खाते हैं, वे रोगों से भरे हो सकते हैं। ० साधक को कम खाना चाहिए, कम बोलना चाहिए। ० दूसरे को गिरता देखकर, जो अपने को संभाल कर चले, वह ज्ञानी है। ___ स्वयं एक बार गिरने के बाद, दूसरी बार सम्भल कर चले, वह अनुभवी है। ___ जो एक बार गिरने पर भी उन्मत्त बन कर ही चलता रहे, वह अज्ञानी है। ० एक सज्जन अपना अनुभव सुना रहे थे-वे एक बार तालाब के किनारे पर टहल रहे थे। अचानक एक बच्चा तालाब के किनारे खेलता - खेलता पाँव फिसल जाने से अन्दर गिर गया। अमर - डायरी: ७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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