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सार्थक जन्म
शुचि कर्मों की दीपमालिका, हरेगी ।
जग का तमस्
स्नेह, शील, शान्ति, सुख की जय
लक्ष्मी घर - घर में
विचरेगी ||
तम की कारा तोड़,
ज्योति केअलाओ ।
जग मग दीप
मानव जन्म तभी है सार्थक,
जब मानव बन
जाओ ॥
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मन की विराटता
जीवन की प्रिय मधुशाला में, मधुरस की कुछ कमी नहीं है । पीओ और पिलाओ जी-भर, लघु मन करना ठीक नहीं है ||
मन की लघुता जैसा कोई, जग में दूजा पाप नहीं है । और महत्ता जैसा कोई, अन्य सुपावन पुण्य नहीं है ||
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सागर के मोती :
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